Tuesday, October 21, 2008

Dayasankar in Oktoberfest

कुछ दुई चार दिन पहले हमरे कॉलेज माँ ओक्टोबर फेस्ट रहा. अब भइया हमका तोः मालूम नाही की ई ओक्तोबेरफेस्ट की बला होअत है l हमरे इय्हान तोह ओक्टूबर का महिना मान दशहरा होअत है तोः हम इन सोचें की कौन जाने ई इन अंग्रेजन का दशहरा हुई l और फिर ई सोच के ई बिदेस मान बैठे हैं तोह नई तरह का दशहरा मना लें, गाँव जाके माई को बताएँगे तोः खुस हो जावेगी, हमने उठाई अपनी पोटली और पहुँच गए ई फिरंग दशहरा मान l उहाँ की देखत हैं, सब लोगन ई बड़े बड़े पकोडे खात रहे l राम जाने पकोडे का चीज का थे, हमका तोः ऐसा लगा की पूरी की पूरी गोभी ही तल दी हो कढाई मां. और सुनो भइया, सब लोगन के हाथ में ये हाथ भर ऊँचे लोटे और उमा काली भांग. अब बिदेस मां का आदमी और का औरत, सब के सब पकोडे खाएं और भंग पियें l पर मजा की बात तोह ई, की सब होस मान. धत ससुरा ! एकदम बेकार भांग और एक तोः ही बेकार पकोडा l हम तोः कहीन, की सारा पैसा ख़राब हुई गवा उनका, जो हमरे किसना की दुकान के छोटा छोटा पकोडा मंगाई होअत, मसाला मार के और नंदू हलवाई से भांग ली होअत तोः एक घूँट में भोले संकर के दरसन हुई जाते साक्षात!!

एक बात और, उन्हां रावन का पुतला तोः रहा नही पर दुई तीन गोरे अंग्रेजी मां कुछ कथा पाठ करे रहीं. और सब लोग अपना ध्यान मगन होकर भजन कीर्तन करे रहीं. अब ऊ की बोले ई ताः हमका समझा नही पर सब प्रभु सरी राम की भक्ति मां ऐसन लीन थे भइया, की सब लोग आँख बंद करेके जहाँ जगह मिले, कोई जमीन पा तोः कोई मेज कुर्सी पा, भाई बेहेन के से प्रेम से मिल के, भग्वान की भक्ति मां लीन रहिन. कसम राम जी की मन खुस होई गवा, बहुत-हेई सुकून मिला मन का ई बिदेस मां

हाँ कुछ लोग रहिन, बेचारे गरीब तन ढकने तक को बस्त्र नाही, पर अब प्रभु के घर त सब एक समान होअत है. अब हम कौन हैं जो छोटा बड़ा मां भेद भाव करीं l हमका जुइ बात भली लगी ओ ई, की ऊ गरीब लोग भी सबके साथ ही बैठे रहे, कोव्नो जाप पात का भेद नही l तोह इतने पावन बाताबरण मां, एक पुन्न्न का काम हम भी कर ही दी ल उन्हां एक बहुत-हेई सुंदर कन्या रहिन, एकदम स्वर्ग लोक की अप्सरा जैसीं, ये बड़े बड़े नयन नक्षा और ये सफ़ेद रंग l एकदम अपनी ऊ दूधउअ गाय है न, गौरी, ऊ के जैसे सफ़ेद l पर बेचारी गरीब घर की, किस्मत की मारी अभागी..ऊ के पास कपड़े नाही..राम राम राम l हम अपनी माई का नाम लेके उका अपना गमछा और अपनी चादर दे आयें l ऊ हमका इतनी बिसमय की नजरों से देखे रही..बेचारी अबला, हम उका कह दिए, रख लो बेहेन, भग्वान के घर से हम तुका ऐसे नही जाने देब l भले घर की कन्या भई, बुरे बखत की मारी, मना करी हमका बहुत बार, पर हम भी सीता मैया का बास्ता देके उका ऊ गमछा और चादर देके ही दम लिए. भैयन, अब ऊ पूजा पाठ मां कहीं रावन का पुतला त जलाबे का नाही, तोह फिर हम थोड़े बहुत भजन सुन के अपनी गाड़ी पकड़ने को बापस चल दिए l जाते जाते ऊ कन्या को देखे, त हमार चादर ओढे जमीन पे बैठी भक्ति में लीन रही l हम भी एक बार और भगवान् राम का नाम लिए और चल दिए उहाँ से, अपनी माई के पास बापस गाँव.

जय सिया राम!